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हरिहरपुरी की कुण्डलिया सत्ता पाने के लिये, मानव है बेचैन। भयाक्रांत नेता सभी, रोते हैं दिन-रैन।। रोते हैं दिन-रैन, सुखद क्षणभंगुर खातिर। ऐंठे सत्तासीन,बहुत हो जाते शातिर।। कहें मिसिर कविराय, तभी ...